Last modified on 10 अप्रैल 2020, at 01:06

थाम लो पतवार / जगदीश नलिन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:06, 10 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश नलिन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अर्नेस्ट हेमिंग्वे के उपन्यास "ओल्ड मैन एण्ड द सी" को याद करते हुए

मुझे मत ले चलो
तुम पाल लगी नाव में
हवा की मरज़ी पर चलना
मुझे गवारा नहीं

हो सके तो छोड़ दो तुम मुझे
तट पर अकेला
शायद मैं कोई वाजिब
विकल्प तजवीज़ कर लूँ

गर आमादा हो तुम
अपनी जवाँमर्दी के बूते
हवा की आवारगियाँ झेलने
और मुझे पार ले जाने पर
तो ठीक है ले चलो मुझे

आगे भँवर का पता है मुझे
बरसों पुराना रिश्ता है उस्से मेरा
दो - दो हाथ करने का
यह मौसम ख़ुशनुमा है
और एहसास करने का भी
कि मुझमें जान का कोई क़तरा
अभी भी शेष है क्या

हवा का क्या भरोसा
कभी भी रुख़ बदल लेती है वह
पाल नीचे गिरा दो तुम
और थाम लो पतवार

आओ हम अपनी ख़स्ताहाल
बाँहों को समझ लें
कि दमदार उफ़नती लहरों से
टकराने का दम इनमें
किस हद तक बच रहा है ।