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विदाई / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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जाओ बादल अब अपने घर
तुमने अमृत जल बरसाया
तपती धरती को सहलाया
नन्हें पौधों को नहलाया
बूंदें बरसी झर-झर–झर॥ जाओ बादल...

कभी तुम्हें सूझी शैतानी
सबको दुख देने की ठानी।
बरसाया जोरों से पानी
सभी हो गए तरबतर॥ जाओ बादल...

गड़-गड़ कर गरजे तुम भारी
फैली सभी ओर अंधयारी
बिजली भी चमकाई भारी
काँप उठे सब थर-थर-थर॥ जाओ बादल...

अब तो छिटक गए हो प्यारे
मटके सूखे सभी तुम्हारे
हरे भरे हैं खेत हमारे
नहीं अब हमें कोई डर॥ जाओ बादल...