भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जग जा मेरी बिटिया रानी / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:09, 12 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जग जा मेरी बिटिया रानी
उठ जा सुख सपनों की रानी

सूरज दादा नभ से आये
रोली का गुब्बार उड़ाते
धीरे-धीरे किरणों का ये
झीना-सा एक जाल बिछाते

सभी जग गये हुआ सबेरा
दादी पूजा में बैठी हैं
नहलाकर ठाकुर जी को अब
रामायण पढ़ने बैठी हैं
नित्य पाठ करती है दादी
तू भी उनसे सुनती थी
पूछ रही थी नहीं उठी क्या?
'शीघ्र उठा दो' कहती थी

जागो हो तैयार नहाकर
पुस्तक अपनी पढ़ लेना
फिर दिन भर जो चाहे करना
पहले पूजा कर लेना