भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुला रहे गुलमुहर / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:17, 12 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुलमुहर गुलमुहर, लाल फूल गुलमुहर
जागो तुम बेटा, देखो ये गुलमुहर
बुला रहे गुलमुहर गुलमुहर
धूप में चमकते प्यारे से लगते
धरती पर गिरते तो, पूजा-सी करते
गुलमुहर गुलमुहर बुला रहे गुलमुहर
पेड़ खूब घने हैं, छाँह इनकी गहरी
पंथी को देते छाया ग्रीष्म की दुपहरी
चित्र में उकेरे से लगते हैं गुलमुहर
गुलमुहर गुलमुहर बुला रहे गुलमुहर
जागो तुम झपट, देखो ये गुलमुहर