Last modified on 15 अप्रैल 2020, at 15:43

उड़ती चील हवा के संग / मधुसूदन साहा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उड़ती चील हवा के संग,
भूरा-भूरा इसका रंग।

पलक झपकते नीचे आती
पलक झपकते ऊपर जाती,
मुन्नी के हाथों की रोटी
मार झपट्टा यह ले जाती,
इसकी फुर्ती देख-देखकर
रह जाते सब बिल्कुल दंग।

यह शिकार में बड़ी सयानी,
डर से सबकी मरती नानी,
चूहे, मेढ़क और कबूतर
इसे देखकर भरते पानी,
कभी गिद्ध से नहीं झगड़ती।
कमजोरों को करती तंग।