Last modified on 24 अप्रैल 2020, at 12:48

भारत के भामाशाह उठो / उर्मिलेश

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 24 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिलेश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फिर से राणा के आन हेतु
रणचंडी के सम्मान हेतु
लेकर नवीन उत्साह उठो
भारत के भामाशाह उठो।
यदि देश नहीं बच पाया तो
इस धन को कहाँ सहेजोगे
यदि बिना मौत मर गए सभी
यह धन फिर किसको भेजोगे
इसलिए तिजोरी खोल खोल
चल दानवीर की राह चलो।
जो देश हेतु होता अर्पित
वह धन पवित्र हो जाता है
उस धन को देने वालों का
जीवन पवित्र हो जाता है
धन-वीरों देश-सुरक्षा की
तुम लेकर पावन चाह उठो।
ओ सौ करोड़ भारत-पुत्रो
सब मिलकर कुछ-कुछ दान करो
जो युद्ध लड़ रहे सीमा पर
उनकी राहें आसान करो।
अपने धन से हर दुश्मन को
तुम करके आज तबाह उठो।