Last modified on 24 अप्रैल 2020, at 15:51

शूपनखा प्रसंग / राघव शुक्ल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 24 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राघव शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब जब नारी निज मर्यादा की रेखा को पार करेगी
शूपनखा की नाक कटेगी

रावण भगिनी दंडक वन में
रूप सुंदरी का रख आई
राम लखन पर मोहित होकर
थी उसकी आंखें ललचाई
रखा प्रेम प्रस्ताव राम से, अपनी करनी स्वयं भरेगी

नाक कटाकर हो क्रोधातुर
खर दूषण को है ललकारा
रामचंद्र ने फिर क्षण भर में
राक्षस सेना को संहारा
पहुंच गई है अब लंका में, रावण सही बात बनेगी

पुनः दशानन की आज्ञा से
है मारीच हिरण बन आया
स्वर्ण हिरण पर मोहित होकर
सीता ने मृगचर्म मंगाया
राम गए हैं मृग के पीछे, निश्चित सीता आज हरेगी