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सरस्वती वंदना / राघव शुक्ल

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स्वर पपीहे का, संगीत दे साम का,
सुर भरा कण्ठ कोयल का अनमोल दे।
मातु कर दे दया चहचहाने लगूँ,
थोड़ी मिसरी मेरे कण्ठ में घोल दे॥

मोहिनी मीन की, मोरपंखों के रँग,
सौम्यता शावकों की मुझे दान दे।
हंस की बुद्धिमत्ता, नजर बाज की,
सिंह की शक्ति, भ्रमरों का मधुगान दे।
कल्पना के कपोतों को आकाश दे,
बन्द पिंजरे हृदय के सभी खोल दे।
मातु कर दे दया चहचहाने लगूँ,
थोड़ी मिसरी मेरे कण्ठ में घोल दे॥

लिख सकूँ देश महिमा, धरागान मैं,
उस गगन की कहानी, जगत की व्यथा।
गीत खुशियों के, किस्से परीलोक के,
तितलियों और शुक सारिका कि कथा।
दर्श दे-दे मुझे स्वप्न में ही सही,
मेरे कानों में आकर के कुछ बोल दे।
मातु कर दे दया, चहचहाने लगूँ,
थोड़ी मिसरी मेरे कण्ठ में घोल दे॥