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मैं तो केवल प्यार लिखूँगा / अभिषेक औदिच्य
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तुम माधव का चक्र लिखो मैं कान्हा का शृंगार लिखूंगा,
तुम कविता में नफ़रत लिखना, मैं तो केवल प्यार लिखूंगा।
घृणा द्वेष की पीली लपटें,
जब उत्तुंग शिखर तक जाएँ
जब समाधि से उठकर शंकर,
की तीनों आँखे खुल जाएँ।
तुम लिख देना खुली जटाएँ, मैं गंगा कि धार लिखूंगा।
दुर्योधन और कंस लिखोगे,
नाश हुए कुछ वंश लिखोगे।
तुम विनाश के अंश लिखोगे,
या केवल विध्वंस लिखोगे।
उसी काल मैं वृन्दावन में माखन का व्यापार लिखूंगा।
तुम पानीपत, प्लासी लिखना,
हल्दी-घाटी, झांसी लिखना।
अकबर पर लानत लिख देना,
राणा को शाबाशी लिखना।
उस स्थिति में भी मैं तुलसी बाबा का आभार लिखूंगा।