भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम में डूबना जान पाया हूं / शिव कुशवाहा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:23, 25 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिव कुशवाहा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा के शीतल झोंके की तरह
तुम मेरे मानस में आकर ठहर गयी हो
अब मैं प्रेम के अनिवर्चनीय आनंद में डूबा हूँ
निहार रहा हूँ तुम्हारे आस पास अपनी परछाई

तुम्हारी हर एक बात ठंडी बयार की तरह ही
छू लेती है मेरे आर्द्र मन की गहराई
में पढ़ लेता हूँ वह सब कुछ
जो तुमने मेरे लिए लिखा है
प्रेम की सुकोमल तूलिका से

मैं चलता रहा हूँ तुम्हारे साथ
बादल की छाया लेकर कड़ी धूप में
और तुम
फूल के रंग में रंगी सुवासित हो रही हो
मेरे जीवन के बेरंग आयामों में

जैसे तेज़ हवाओं के साथ
बारिश की बूंदें धरती को कर देती हैं शीतल
उसी तरह तुम मेरे धूसरित हो रहे जीवन को
बना देती हो खुशनुमा
खींच देती हो एक अमिट मुस्कान

प्रिये!
मैं प्रेम लिखना नहीं जानता था
और न प्रेम की कविता करना ही
किंतु प्रेम में डूबना जान पाया हूँ
कि तुम्हारे प्रेम ने मुझे
कविता करना सिखा दिया है और प्रेम करना भी...