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चिड़ियां डर रही हैं / शिव कुशवाहा

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उन्मुक्त आकाश में
उड़ान भरने वाली चिड़ियाँ डरी हुई हैं
अपने स्याह होते परिवेश से

दिशाओं में विचरने के लिए
नहीं है उनके पास खुला स्पेस
वे नहीं कर पा रही हैं वह सबकुछ
जो चिड़िया होने के लिए होता है ज़रूरी

उनके लिए चारो ओर उदासी है
उनके लिए हर तरफ पहरा है
उनके लिए सुरक्षित है केवल भय
उनकी अस्मिता ख़तरनाक माहौल के
बीचो बीच जूझ रही है

गिद्ध मंडरा रहे हैं चिड़ियों के ऊपर
वे घात लगाए देख रहे हैं
उनकी सी छोटी दुनिया
और मौका मिलते ही खूनी पंजो से
नोचकर फेक देते हैं उनके पंख

बहेलियों ने भी बिछा रखे हैं अपने जाल
वे धोखे से झपटना चाहते हैं
उड़ती हुई चिड़िया कि अस्मिता

चिड़ियाँ डर रही हैं अपनी उड़ान भरने से,

कि वे अब सुरक्षित नहीं हैं अपने घोसलों में
और स्वच्छन्द आकाश में तो बिल्कुल भी नहीं...