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कुछ न कहो तुम / केदारनाथ अग्रवाल

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कुछ न कहो तुम
तुम्हें देखकर समझ गए हम — 
                           बिना कहे ।

बिन्धे ग्लानि से — 
                   बन्धे मौन से — 
व्यथित हुए तुम
                दुख की मार सहे;

हाड़ फोड़ कर
                 निकले आँसू
           टप टप बहुत बहे ।

03 जनवरी 1981