[चार लेखक दोस्तों के साथ भेड़ाघाट पर नौका—यात्रा को याद करते हुए]
बुख़ार में दो नदियाँ
क्यों आती हैं एक साथ याद
क्यों याद आते हैम एक साथ
जबलपुर और वज़ीराबाद
और चनाब जैसी उद्दाम नदी बन जाती
भेड़ाघाट की नर्मदा
गम्भीर और शांत
भेड़ाघाट की नर्मदा नदी नहीं
जल —गली है
जिसके भूल—भुलैयाँ जलमार्ग पर
सुनी जा सकती है
एक रूपवती रानी की भटकती हुई पदचाप.
बुख़ार में क्यों आती है याद
रूपवती रानी के साथ
राबयाँ के कण्ठ से निकली किसी
लोकगीत की तान
जिसे कृष्णा सोबती ने ‘ज़िन्दगीनामा’ में मेरे लिए
बाँध रखा है
बहुत से शब्द —मेलों के साथ
कृष्णा सोबती जानती है
मेले बच्चों को बहुत अच्छे लगते हैं
क्या कृष्णा सोबती यह भी जानती है
कि बच्चे मेलों में ,अक्सर खो भी जाते हैं?
.... और ‘ज़िन्दगीनामा’ के शब्द—मेलों में खोया हुआ बच्चा
अचानक मिल जाता है
जबलपुर के निकट भेड़ाघाट पर
एक नास्तिक कवि के प्रार्थना गीत सुनता हुआ
क्या यह नदी भी नास्तिक है
जो नास्तिक शब्द सुनकर भी विचलित नहीं होती
और धुआँधार पर अपराजेय चट्टानों से टकराने के बाद
अपने घावों को अमरकांत और काशीनाथ से छिपाती है
और अपने —आप को कहानी बनने से बचाती है
कालिया नदी को लतीफ़े सुनाता है
जिस पर नदी तो नही हँसती
लेकिन राजेन्द्र मेहरोत्रा लोट—पोट हो जाता है—
फिर शब्दों का एक मेला जुड़ रहा है
और मेले में खोया हुआ बच्चा
अपने बुख़ार—घर की ओर मुड़ रहा है.
क्या ये चारों लेखक भी नहीं जानते
बच्चे मेलों में अक्सर खो जाते हैं?
वज़ीराबाद कृष्णा सोबती के उप्न्यास के परिवेश का चनाब नदी के किनारे बसा हुआ एक क़स्बा जो अब पाकिस्तान में है. रायबाँ उक्त उपन्यास की एक अल्हड़ पात्र.