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चिड़ियाँ और कविताएँ-5 / कुमार विकल
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तुम अकेला होने से बहुत डरते हो
इस लिए तुमने अपने कमरे में
भौत से घौंसले बना रखे हैं
जिनमें कई साँवली—गोरी चिड़ियों को बसा रखा है.
लेकिन चिड़ियाँ
इन घौंसलों की ग़ुलाम नहीं
हरेक की अपनी —अपनी मुक्त दिनचर्या है
कोई भी तुम्हारे अकेलेपन की
दहलीज़ तक नहीं आती
और जब कभी आती भी है
किसी वहशी परिंदे से पाए
अपने घाव को लेकर आती है
तुम हरेक घाव को सहलाते हो
लेकिन चिड़ियाँ आखिर चिड़ियाँ हैं
स्वस्थ होने पर
अपनी मुक्त दिनचर्या में लौट जाती हैं
फुदकती , बचहचहाती हैं
और तुम—
इतने सारे घौंसलों के बीच
पहले से भी अधिक अकेले हो जाते हो.