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एक नास्तिक के प्रार्थना गीत-1 / कुमार विकल
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ये सभी प्रार्थनायें
भक्ति—गीत
विनय पद
और सभी आस्तिक कविताएँ
एक निहायत निजी ईश्वर को संबोधित हैं
जिसे मैंने दुखी दिनों में
रात गये
एक शराबख़ाने की अकेली बेंच पर
पियक्कड़ी की हालत में
प्रवचन की मुद्रा में पाया था
“ज़िन्दगी से भगे सिद्धार्थ
वापस लौट आओ
ज़िन्दगी अब भी कविता के रूप में
तुम्हारा इंतज़ार कर् रही है”
मैं जानता हूँ कि कविता में आदमी की मुक्ति नहीं
लेकिन जब आदमी
कविता को शराब के अँधेरे से निकालकर
श्रम की रओशनी में लाता है
तब वह आदमी की मुक्ति के नये अर्थ पाता है”