भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक नास्तिक के प्रार्थना गीत-3 / कुमार विकल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 9 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह= रंग ख़तरे में हैं / कुमार विकल }} प्र...)
प्रभु जी मेरी एक विनय तो सुन लो
सभी प्रार्थनाएँ लेकर मुझसे
एक शराबी कविता दे दो
जो मुझको सस्ती शराब के अड्डों पर ले जाए
जहाँ बूढ़े ,बेकार और बेकार रंडियाँ
या छाँटी मज़दूर
ज़हरीली दारू पी कर मर जाते हैम
अख़बारों के कालम भर कर
जीवन की कीमत जो मरने पर पाते हैं.