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हर साँझ तप्कीतप्की / गीता त्रिपाठी
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हरसाँझ तप्कीतप्की
प्यालामा पो भरिएँ
समेट्नेहरूका लागि
टुक्राटुक्रा छरिएँ
जीवनको मैदानमा मृत्युको खेल खेलेँ
जुनेली चाह साँचेँ अँधेरी रात झेलेँ
पोखेर आफैँलाई अरूमा पो भरिएँ
समेट्नेहरूका लागि टुक्राटुक्रा छरिएँ
तस्विर आफ्नो हेरी ऐना अगाडि दुखेँ
मन्दिर जान हिँडेँ मसान छेउ पुगेँ
खोजेर न्यानो घाम आगैमा पो खरिएँ
समेट्नेहरूका लागि टुक्राटुक्रा छरिएँ