भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर साँझ तप्कीतप्की / गीता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:01, 3 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गीता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्रह=थ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
हरसाँझ तप्कीतप्की
प्यालामा पो भरिएँ
समेट्नेहरूका लागि
टुक्राटुक्रा छरिएँ
 
जीवनको मैदानमा मृत्युको खेल खेलेँ
जुनेली चाह साँचेँ अँधेरी रात झेलेँ
पोखेर आफैँलाई अरूमा पो भरिएँ
समेट्नेहरूका लागि टुक्राटुक्रा छरिएँ
 
तस्विर आफ्नो हेरी ऐना अगाडि दुखेँ
मन्दिर जान हिँडेँ मसान छेउ पुगेँ
खोजेर न्यानो घाम आगैमा पो खरिएँ
समेट्नेहरूका लागि टुक्राटुक्रा छरिएँ