[ अमितोज के लिए ]
प्रभु जी कोई ऐसी युक्ति करो
दास को कविता—मुक्त करो.
कविता छलनी , भाषा नटिनी—
ने इतना भरमाया.
इसके ड्राईंग —रूम की शोभा
बन कर समय गँवाया.
भूल गया मैं अपनी हस्ती ,
छीड़ी सारी फ़ाक़ा—मस्ती.
जब इस विष—कविता ने मुझको’
एक सुरख्शा की चाहत का—
मीठा ज़हर पिलाया.
दास को विष—उन्मुक्त करो
प्रभु जी कोई ऐसी युक्ति करो,
ह्रासकाल की ढलती कविता—
में जब कोई कवि रच जाए,
भाषा—छल के बावजूद वह ;
एक पतित कवि ही कहलाए.
ऐसे कवि की सृजनशीलता,
अनुभव ,चिन्तन,काव्य धर्मिता—
एक बीमार समय के लक्षण ;
ख़ुद में रोग बने कि जिससे—
कवि तो जीते जी मर जाए.
दास को जीवन युक्त करो,
दास को कविता—मुक्त करो.
प्रभु जी कोई ऐसी युक्ति करो.