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दसैँ भयो नि / गीता त्रिपाठी

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वर्षदिनको चाड हजुर आउँछ वर्षेनी
यो दसैँ त दसै भयो नि
दुःखमाथि दुःखै थप्यो
भोकमाथि शोकै थप्यो
यो दसैँ त दसै भयो नि
 
थाप्लोभरि रिन बोकी जेठो भयो परदेसी
चिचिलाको पेट भोकै, जन्मदिने भएँ दोषी
जहान मेरो रोगी हजुर धेरै कष्ट भोगेँ हजुर
यो दसैँ त दसै भयो नि
 
मक्किएको धुरीखामो जिन्दगीको बाटो लामो
हात राखी पुर्पुरोमा छाती पिटूँ कसको सामू
साहुलाई भयो जेथा हजुर मनमा रह्यो व्यथा हजुर
यो दसैँ त दसै भयो नि