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पूर्वबाट घाम झुल्क्यो / गीता त्रिपाठी

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पूर्वबाट घाम झुल्क्यो पश्चिम पर्योा छाया
दिनहरू बित्दै जाँदा बिरानो भो माया
 
उत्ताउलो रङ्ग चढ्दा लालुपाते फूलमा
भँवरो नि मायालु झैँ लाग्दोरैछ भूलमा
हुरीभन्दा छिटो उड्छ बतासिने मन
बादलमा हराउँछ पूर्णिमाको जून
 
प्यास जाग्यो कसो गरूँ धमिलो छ पानी
सङ्लो पार्न सकिएन बिग्रिएको बानी
पानी खस्छ बलेँसीमा ठेलोभित्र प्यासी
बाँच्नुपर्योे वेदनालाई मनभरि साँची