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तिमी को हौ ! / गीता त्रिपाठी

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तिमी को हौ कहाँबाट आयौ
अँधेरी रातको जूनझैँ छायौ
मेरोसामु जुनेली केश फिँजायौ
 
तिमी बादलुमा छेकिएर बस्छ्यौ
तिमी छालसँगै मेटिएर बग्छ्यौ
बताऊ कहाँ छ सधैँ देख्ने ठाउँ
भिजेको परेली त्यतै सेक्न पाऊँ
तिमी को हौ... !
 
मेरो उज्यालोमा किन ओझेल पर्छ्यौ
नचिनेझैँ कतै शून्यतामा सर्छ्यौ
बताऊ कहाँ छ तिमी लुक्ने ठाउँ
जसै सम्झन्छु म त्यहीँ पुग्न पाऊँ
तिमी को हौ...!