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मेरो चाह / गीता त्रिपाठी

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कैलाशको चाह बोक्छ मानसरोवर
मेरो चाह त्यस्तै पाऊँ प्रियतमको घर
 
जताततै उज्यालोले बाँधिराखोस् माया
कैलाशकै प्रतिबिम्व बोक्ने सङ्लो छाया
मेरो देउता चम्किरहू सधैँभरि मैमा
धूलो फक्री फूल बनोस् तिम्ले टेक्ने भूइँमा
चारैतिर सुगन्ध फैल्योस् हरहर
मेरो चाह त्यस्तै पाऊँ प्रियतमको घर
 
विश्वासले चुलिएला चाह थरीथरी
हृदयको कुनाकुना इन्द्रेणी झैँ परी
मेरो नाता बाँचिरहोस् युगौँ तिमीसँग
घामछाया हाँसिरहोस् नयाँनयाँ रङ्ग
छातीभित्र मोती साँच्छ मानसरोवर
मेरो चाह त्यस्तै पाऊँ प्रियतमको घर