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खत मिला / गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'

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खत मिला
आसक्ति से अभिसिक्त
चाहे मन जिसे पढ़ना हजारों बार
सीने से लगा कर चूमना,
फिर झूम जाना।
राम जी को नमन करके
कामना कि कुशलता की
और फिर आगे लिखा है
हो बड़े निष्ठुर,
न आयी याद अम्मा की।
स्वयं आना था,
सुनहरे आभरण ले
वस्त्र ले, मिष्ठान्न ले
यह तक नहीं सूचित किया तुमने
बहन की मिल गयी राखी।
गया है बिल्कुल तुम्हीं पर
हठ वही, गुस्सा वही
अवसर मिले तो
लाड़ले को देख जाना,
और माथा चूम जाना।
सोच में रहते बहुत बापू
न जाने किस तरह
अन्जान नगरी में
अकेले रह रहे होंगे?
कहाँ-क्या खा रहे होंगे?
वृद्ध दादी
भर कटोरा दूध धर आती लपक कर
बोलता कागा मुड़ेरे पर कभी तो
समझती हैं आ रहे होंगे।
अन्त में
दो बँूद के धब्बे
'मृदुल' कुछ लड़खड़ाते शब्द कम्पित-
" यहाँ की चिन्ता न करना,
मन करे जब, घूम जाना। "