Last modified on 4 मई 2020, at 22:55

राष्ट्र-देव-चरणों में / कविता भट्ट

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 4 मई 2020 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


लौहस्तम्भ-से खड़े वे मनुज शिविर में
सहते हैं हाड़ कँपाती शीत- शिशिर में।
प्रभात, संध्या, घनघोर रात्रि- तिमिर में
और चिलचिलाती चुभती धूप दोपहर में।

मनुज हैं; यंत्र नहीं- इनमें भी हैं संवेदनाएँ,
इन्हें भी तड़पाती हैं; निज गहन वेदनाएँ।
नित क्रूर काल; किन्तु न ये विचलित होते,
न भय खाते, अश्रु बहाते और ना ही रोते।
 
निज रक्त-संबंध बलि चढ़ाते नित वीर जवान
राष्ट्र-देव-चरणों में; गौरवान्वित हो बने महान।
मातृभूमि के उर विजय माल सँजोने वालों को,
कोटिशः नमन 'कविता' का- इन मतवालों को।