बन्द कर लो द्वार

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रचनाकार | रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |
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प्रकाशक | हिन्दी साहित्य निकेतन, 16 साहित्य विहार,बिजनौर-246701( उत्तर प्रदेश ) |
वर्ष | 2019 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ( हाइकु)कविताएँ |
विधा | |
पृष्ठ | 124 |
ISBN | 978-93-86812-70-4 |
विविध | मूल्य(सजिल्द) :250 रुपये |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- बन्द कर लो द्वार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
136
हे बन्धु मेरे
बन्द कर लो द्वार
लौटना नहीं।
137
हम थे जोगी
धरा -गगन घर
चले जिधर।
138
जागोगे जब
हमें नहीं पाओगे
रोना अकेले।
139
हरित पत्र
रक्तिम पतझर
मेपल झरा।
140
हँसा विपिन
जगमग आँगन
मेपल लाल।
141
हृदयतल
आरती बन गूँजे
मधुर बैन।
142
ज़रा ठहर,
बीतने ही वाला है
चौथा पहर।
143
हुई अँजोर
बज उठी साँकल
खोलो जी द्वार!
144
हुलसा उर
सुनी थी पदचाप
आए वे द्वार।
145
हेरते तट
नदी कब रुकी है
उफनी भागी।
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