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छूटा हुआ रास्ता / राजेन्द्र राजन
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मैं दिए गए विषयों पर सोचता हूँ
मैं दी हुई भाषा में लिखता हूँ
मैं सुर में सुर मिला कर बोलता हूँ
ताकि ज़िन्दगी चलती रहे ठीक-ठाक
मिलती रहे पगार
घर छूटे हो गए हैं बरसों
अब मैं लौटना चाहता हूँ
अपनी भाषा में अपनी आवाज़ में अपनी लय में
कभी कभी मैं पूछता हूँ अपने आप से
अपने बचे – खुचे एकान्त में
क्या मैं पा सकूँगा कभी
अपना छूटा हुआ रास्ता ?