भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:12, 7 मई 2020 का अवतरण (' </poem> मैं पानी हूँ मैं जीवन हूँ मुझसे सबका नाता । मैं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
</poem>
मैं पानी हूँ मैं जीवन हूँ मुझसे सबका नाता । मैं गंगा हूँ , मैं यमुना हूँ तीरथ भी बन जाता । मैं हूँ निर्मल पर दोष सभी , औरों के हर लेता । कल तक दोष तुम्हारे थे जो , अपने में भर लेता । पर सोचो तो मैं यों कब तक , कचरा भरता जाऊँ ! मुझको जीवन भी कहते हैं , मैं कैसे मरता जाऊँ ! गन्दा लहू बहा अपने में कब तक चल पाता तन । मैं धरती की सुन्दरता हूँ , हर प्राणी की धड़कन । मेरी निर्मलता से होगी, धरती पर हरियाली । फसलों में यौवन महकेगा, हर आँगन दीवाली । नदियाँ ,झरने ,ताल-तलैया , कुआँ हो या कि सागर । रूप सभी ये मेरे ही हैं, एक बूँद या गागर । हर पौधे की हर पत्ती की प्यास बुझाऊँ जीभर । पर जीना दूभर होगा ये, दूषित हो जाने पर ।
</poem> -0-