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पानी / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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मैं पानी हूँ मैं जीवन हूँ मुझसे सबका नाता । मैं गंगा हूँ , मैं यमुना हूँ तीरथ भी बन जाता । मैं हूँ निर्मल पर दोष सभी , औरों के हर लेता । कल तक दोष तुम्हारे थे जो , अपने में भर लेता । पर सोचो तो मैं यों कब तक , कचरा भरता जाऊँ ! मुझको जीवन भी कहते हैं , मैं कैसे मरता जाऊँ ! गन्दा लहू बहा अपने में कब तक चल पाता तन । मैं धरती की सुन्दरता हूँ , हर प्राणी की धड़कन । मेरी निर्मलता से होगी, धरती पर हरियाली । फसलों में यौवन महकेगा, हर आँगन दीवाली । नदियाँ ,झरने ,ताल-तलैया , कुआँ हो या कि सागर । रूप सभी ये मेरे ही हैं, एक बूँद या गागर । हर पौधे की हर पत्ती की प्यास बुझाऊँ जीभर । पर जीना दूभर होगा ये, दूषित हो जाने पर ।

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