बाल कविताएँ / भाग 19 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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7-बादल भैया

उठे बवण्डर, तपता अम्बर
गर्मी-गर्मी , बाहर -भीतर ।

चढ़ी धूप जब, बहा पसीना,
चैन सभी का तूने छीना ।

सूख चुके हैं ताल -तलैया
प्यासी बकरी, प्यासी गैया ।

बादल भैया ! अब आ जाओ ,
इस गर्मी को दूर भगाओ ।

प्यासी धरती तुझे बुलाती-
‘आ जा बादल ! प्यास सताती।’

-0-

8-जगमग तारे

अम्बर में थे
अब तक हँसते
जगमग तारे ।
आज उतरकर
खेल रहे
धरती पर सारे ।
बहुत घना
फैला अँधियारा
दीपक लाए
हैं उजियारा
द्वार हमारे ।
उड़ते-उड़ते
नील गगन में
जैसे उतरें
हंस सुनहरे
पंख पसारे ।

( 6-9-93, बालहंस- -नवम्बर - प्रथम 94)

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