भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी पहले भी / अजित कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:57, 9 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार }} सू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सूनी सांझ, रंगी पगडंडी,

डूबा-डूबा-सा सूरज,

सभी दूसरे पेड़ों से कुछ अलग नीम

ऊंची-तिरछी…


अरे, यहां तो

पहले भी मैं आया हूं ।


यही साँझ, ये ही पगडंडी,

यही सूर्य, यह वृक्ष अकेला …


मुझको यह स कितना परिचित,

निश्चय ही मैं यहां कभी पहले भी आया हूं ।

ठीक यहीं पर, इसी डगर पर,

इसी अकेले वृक्ष तले

आया हूं ।


पहले कभी, इसी जीवन में, पहले कभी,

यहां निश्चय ही आया हूं ।