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भोकानाङ्गा भाइ भाइ / युद्धप्रसाद मिश्र

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रगत चुसेका छाती खोल्दै
भोका नाङ्गा लागे उठ्न
आम दलितको पीडाबाट
लाग्यो दिनदिन प्रतिभा फुट्न

झुपडीले अब आँखा खोल्यो
बोल्दै धावा अब जनमत गम्क्यो
कदम कदमका आतुर गतिमा
गौरव गरिमा बिजली चम्क्यो

बलात्कारीको लाश निकाल्ने
स्त्री जाति पनि आए लड्न
श्री नढलेका वीर युवकहरू
बलिवेदीतिर लागे चढ्न

महल अटारी परजा परजा
जनजागृतिले देला-खाई
धरतीतलका व्यापक हामी
भोका नाङ्गा भाइ भाइ