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भरोसा / शंकरानंद

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कोई अगर आँख बन्द किए
चल रहा है हाथ पकड़कर
तो उसके रास्ते के पत्थर देखना
सम्भालना गिरने से पहले

जब भी वह कुछ कहे तो सुनना
देखना कि
उसकी आँखें क्या देखना चाहती हैं

सुनना उसकी हर आवाज़
जो कहने से पहले
रुक जाए कण्ठ में

बहुत मुश्किल से मिलता है वह कन्धा
जिस पर सिर टिकाया जाए तो
ग्लानि नहीं हो
सुकून मिले ।