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धूप / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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ठिठुर गए पेड़ों के पात
छोटे-से दिन , लम्बी रात ।
सिहरा हुआ ताल का पानी
हवा भी करती मनमानी ।
धुला-धुला सर्दी का रूप
तन को लगे सुहानी धूप ।
किट-किट दाँत , काँपती छाँव
जगह-जगह पर जले अलाव ।
ओढ़ कम्बल और रज़ाई
सबने सर्दी दूर भगाई ।
मूँगफली ने धूम मचाई
गर्म पकौड़ी मन को भाई