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फटफट पुतली / दुर्गालाल श्रेष्ठ

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जत्ति हेर्छु हेरुँहेरुँ
लाग्छ है मलाई,
पुतलीकेा फटफट
पखेटा-चलाइ ।

हावाभन्दा छ है उसको
नरम छुवाइ,
सिमलको भुवाभन्दा
हलुका उडाइ ।

उसलाई देख्दा लाग्छ यहाँ
छ कि उड्ने फूल –
कि ऊ नै हो धर्तीसँग
र्स्वर्ग जोड्ने पुल –