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बुधुआ मर जाएगा / नीरज नीर

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जंगल की ताजा हवा और
निर्झर के ठंढे जल के मानिंद रहने वाले
बुधुआ उरांव ने पहली बार जाना है
धर्म में अनुशासन ज़रूरी है
और ज़रूरी है
बिना कुछ सोचे समझे
भीड़ के साथ
सुर में सुर मिलाना
वह चाहता था अपनी बेटी को पढ़ाना
पत्थरों वाले बड़े स्कूल में
जिसमे कभी-कभी आती हैं
पढ़ाने गोरी मेम भी
जिसके लिए उसे बनना पड़ा क्रिस्तान
लेकिन उसके लिए क्या सरना, क्या क्रिस्तान ...
उसने सोचा
बेटी तो बनफूल से गुलाब बनेगी
पर अब वह बंधन महसूस कर रहा है
उसे सिखाया जा रहा है आदमी होने का अर्थ
हाथ मिलाने के तरीके
प्रार्थना में खड़े होने का सलीका
उसका धर्म तो उसे आज़ादी देता था
हिरण की तरह जंगल में भीतर तक
कुलांचे मारने की
पंछियों की तरह सुदूर आकाश में मनचाहे
उड़ान भरने की
बेटी तो गुलाब बन जाएगी
पर बुधुआ मर जाएगा
उसकी जड़ सूखने लगी है
उसकी छाती से रिसता रहता है खून
वह महसूस करता है स्वयं को
सलीब पर लटका हुआ ..