भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाह कर भी / मधुछन्दा चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:34, 14 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुछन्दा चक्रवर्ती |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चाह कर भी
कह नहीं पाते है दिल की बात
हो जाते हैं गुमसुम
दर्द भरे, अजनबी हालात।
अनजाने वह हो जाते हैं
जो हैं बरसों से जाने-पाहचाने
क्यों करते हैं ऐसा
बोलो हम क्या जाने?
रिश्तें टूट चुके है पर
अभी भी हैं निभाते हुए
अपने थे कभी यें
पर अब पराए हुए।
दोनों की मंजिल नहीं है एक
तो चलना क्यों साथ-साथ
हमराही की गुंजाइश कहाँ है
अब तो तन्हा है हालात।