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शरद ऋतुको सुन्दर छवि / बद्रीप्रसाद बढू

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हिलो मैलो साह्रा सुकीकन भयो रम्य धरती
सफा नीलो राम्रो गगन छ अहा ! सुन्दर अति /
हट्यो साह्रा मेरो बिरह मनको भार सकिई
दशैँ आयो बोकी शरद ऋतुको सुन्दर छवि//१//

बन्यो चङ्गा जस्तो हृदय कलिलो भाव बटुली
दशैँ आयो बोकी शरद ऋतुको सुन्दर छवि
सफा नीलो राम्रो गगन छ अहा ! सुन्दर अति /
दशैँ आयो बोकी शरद ऋतुको सुन्दर छवि//२//