भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परिधि / बद्रीप्रसाद बढू

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:57, 18 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बद्रीप्रसाद बढू |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


म जे जे होस् भन्थें उही उही यहाँ उल्टिन गयो
हरायो जे खोज्थें परिधि पनि यो छोटिन गयो
गयो खोला खोलै रहर मनको जिन्दगी भरि
रह्यो बाँकी धोको हृदय बिचरो रुन्छ यसरी //