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चादर / सुरेन्द्र डी सोनी
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दीवार के पीछे भी
तुझे
प्यार करना न आया –
बत्ती बुझाकर
आज भी
वही चादर अँधेरे की ओढ़ ली
शिट्ट !
कब तक बनी रहोगी
’इण्डियन’…?