धानी चुनर मोरी हाय रे
जाने कहाँ उड़ी जाए रे
आज मेरे आँचल से क्यों लिपटती जाए
जीवन की बगिया में ये किसने फूल खिलाए
नस नस में डोल के घूँघट पट खोल के
आज खुशी लहराए रे
धानी चुनर मोरी हाय रे ...
झूम रहे हैं सपने दो आँखों में लहराके
मन ही मन मुसकाऊँ मैं नई डगर पिया के
पग पग अनजान है, नज़र हैरान है
बात मगर मन भाए रे
धानी चुनर मोरी हाय रे ...
चंचल मन ये काहे मैं उड़ती उड़ती जाऊँ
ओ नील गगन पर जाके चन्दा को गले लगाऊँ
सुध बुध बिसरा गए ये दिन कैसे आ गए
कोई मुझे समझाए रे
धानी चुनर मोरी हाय रे ...