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अनकन्टार गाउँ हुँ म बत्ती-बाटो छैन / मञ्जुल

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गाउँ
  
अनकन्टार गाउँ हुँ म बत्ती-बाटो छैन
घातै घात छन् छातीभित्र भन्न पा'को छैन
 
झारूँ आँसु कति झारूँ रोई सकिँदैन
नाङ्गो छु म, एकदम नाङ्गो ठिही छेकिँदैन
झुपडी छन् माया लाग्दा हेर्दा वरपर
बाँचेको छु दुःखी जीवन रुँदै धरधर
 
शिक्षा छैन आँखा खोल्ने, अज्ञान अन्धकार छ
अन्याय छ, अत्याचार छ, त्यस्तै व्यभिचार छ
थिचोमिचो कति कति भनी सकिँदैन
दुःख'व्यथा यति धेरै गनी सकिँदैन ।