भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता-3 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 09:14, 12 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: गर्मी की रातों में जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद तुम मेरे हृदय की ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर्मी की रातों में जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद तुम मेरे हृदय की शांति में निवास करोगी आश्‍चर्य में डूबे मुझ पर तुम्‍हारी उदास आंखें निगाह रखेंगी तुम्‍हारे घूंघट की छाया मेरे हृदय पर टिकी रहेगी गर्मी की रातों में पूरे चांद की तरह खिलती तुम्‍हारी सांसें , उन्‍हें सुगंधित बनातीं मरे स्‍वप्‍नों का पीछा करेंगी।

अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल