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आपदाएँ / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'

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जानना इतना ही आसान होता
कि तुम्हारे मन में क्या है तो
इतना कुछ न करना पड़ता
जब तुम
पाषाण ह्रदय लिए बैठे थे और
मैं चाहती थी कि।
अपना अक्स उकेर दूँ तुम्हारी चौड़ी छाती पर
तब। मन ही मन
एक नुकीले हथियार का नक्शा बना चुकी थी
तुम पर प्रहार भी किया था मन ही मन
लक्ष्य हासिल करने का जुनून
मुझे उस ओर धकेल रहा था
जहाँ। निगाहों की ज़द में और कोई न हो
तुम्हें हर उस वस्तु से दूर करना था जिससे
किसी और के होने का हिसाब मिले ही न

इसी कवायद में श्रम पर श्रम करती रही
सच्ची के हथियारों का जखीरा गुफा में भरती रही
साथ में जहन में ज़हर भी
अकेले होने का दंश दहशतगर्दी पर उतारू है

मैं तुम्हारे साथ बैठी
तुम्हारी छाती के बालों पर
उंगलियों से अपना नाम लिखने ही जा रही थी और।
चाहती थी कि तुम पाषाण युग से निकल आओ
मेरा शिकार करते वक़्त
सिर्फ़ और सिर्फ़ अग्नि पैदा करो

तभी बिजली की गड़गड़ाहट से नींद खुल गई
उसी वक़्त तय हो गया कि।
मेरे दुश्मनों में अब
ब्रह्मांड की आपदाएँ भी शामिल हैं!