भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपशकुन / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 24 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम भार्गव 'ज़ाकिर' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गली के मोड़ पर
कचरे के ढेर के पास
रख आई हूँ एक बड़ा-सा दिया
एक पुड़िया में कुछ पूए
प्रेतों के लिए
और
सहमते हुए कर आई
एक अपशकुन
जला कर बुझा आई हूँ उजाला
मुझे कनखियों से
दिख गया था
वो बच्चा जो
वहाँ कुछ ढूँढता
कर रहा था इंतज़ार
मेरी रुखसती का
उसे भी
करना था इंतज़ाम
अपने घर की चौखट पर रखा
अंधेरा हटाने का
एक आस की बाती जलाने का!