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फिर हुई शाम / नमन दत्त

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फिर हुई शाम, जाम याद आये।
चश्मे-जाँ के सलाम याद आये॥

चमन में देखकर बहार हमें,
कितने महबूब नाम याद आये॥

अपनी आवारगी के पहलू में,
यकबयक कितने काम याद आये॥

रूबरू तुझको अपने पाते ही,
हसरतों के कलाम याद आये॥

दब के जो रह गये किताबों में,
उन गुलों के पयाम याद आये॥

चश्मे-मय उनकी देखकर 'साबिर' ,
मैकदे के निज़ाम याद आये॥