भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो मेरा अपना था / नमन दत्त
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:01, 24 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नमन दत्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जो मेरा अपना था, कोई और था।
मुझमें जो रहता था, कोई और था।
जो सदाएँ बनके मेरे आसपास,
फैलता जाता था, कोई और था।
तू मेरे एहसास को मत लफ़्ज़ दे,
जो दुआ बनता था, कोई और था।
मैं समझता था, बड़ा क़ाबिल हूँ मैं,
और जो दाता था, कोई और था।
सुबह जो ऊगा है, कोई और है,
शाम जो ढलता था, कोई और था।
तू है क्या "साबिर" ? है क्या तेरा वजूद?
तुझमें जो गाता था, कोई और था।