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कोई ऐसी सज़ा / नमन दत्त

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कोई ऐसी सज़ा न दे जाना।
ज़िंदगी की दुआ न दे जाना॥

दिल में फिर हसरतें जगा के मेरे,
दर्द का सिलसिला न दे जाना॥

वक़्त नासूर बना दे जिसको
यूँ कोई आबला न दे जाना॥

सफ़र में उम्र ही कट जाए कहीं,
इस क़दर फ़ासला न दे जाना॥

साँस दर साँस बोझ लगती है,
ज़िंदगी बारहा न दे जाना॥

इस जहाँ के अलम ही काफ़ी हैं,
और तुम दिलरुबा न दे जाना॥

पीठ में घोंपकर कोई ख़ंजर,
दोस्ती का सिला न दे जाना॥

इल्म हर शय का उन्हें है "साबिर"
तुम कोई मशवरा न दे जाना॥