कोई ऐसी सज़ा न दे जाना।
ज़िंदगी की दुआ न दे जाना॥
दिल में फिर हसरतें जगा के मेरे,
दर्द का सिलसिला न दे जाना॥
वक़्त नासूर बना दे जिसको
यूँ कोई आबला न दे जाना॥
सफ़र में उम्र ही कट जाए कहीं,
इस क़दर फ़ासला न दे जाना॥
साँस दर साँस बोझ लगती है,
ज़िंदगी बारहा न दे जाना॥
इस जहाँ के अलम ही काफ़ी हैं,
और तुम दिलरुबा न दे जाना॥
पीठ में घोंपकर कोई ख़ंजर,
दोस्ती का सिला न दे जाना॥
इल्म हर शय का उन्हें है "साबिर"
तुम कोई मशवरा न दे जाना॥