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मेज इतनी पुरानी थी / गिरिराज किराडू

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मेज इतनी पुरानी थी कि उसका कोई वर्तमान नहीं था

हमारे बच्चे इतने नये थे कि उनका कोई अतीत नहीं था


बच्चों का अतीत हमारे पाप में छुपा था

मेज का वर्तमान किसमें था?


मेज का चौथा पाया तीन पीढ़ियों से गायब है

इससे तीन कथाएं निकलती हैं –

एक में चौथा पाया चिता की लकड़ी बन जाता है

दूसरी में वो अपने किसी जुड़वां को ढूंढने

एक दिन पूजा के समय घर छोड़ देता है

तीसरी में वो हम सब की सबसे पुरानी

तस्वीर का फ्रेम बन जाता है

चौथी में कथा भी तीन पीढ़ियों से गायब है


हममें से अधिकांश नहीं जानते कि वे चौथी कथा के पात्र हैं

चौथा पाया किसी अदृश्य स्क्रीन पर चौथी कथा रच रहा है


शेष तीनों पाये धीरे-धीरे हिल रहे हैं


(प्रथम प्रकाशनः बहुवचन,महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय,वर्धा/ इस कविता के लिये भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार दिया गया)