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रागनी 7 / विजेन्द्र सिंह 'फौजी'

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हम दुखियारे कर्मां के मारे
ना कोए सहारे हे त्रिलोकी भगवान

टेम पै ना रोटी मिलती भुखे सोवां सा
पाकिस्तानी घुसपैठियाँ के जी नै रोवां सा
किसा बाज्या खुंड म्हारा छुटग्या ढुढ़
किसी बणी भुंड हाम होगे-सा बिरान

म्हारे डांगर भुखे मरते होंगे कुण गेरैगा घास
सारी मेहनत पै पाणी फिरग्या होग्या सत्यानाश
होगी हाणी किस्मत मरजाणी
बिन पाणी म्हारे जलगे होंगे धान
 
मेहनत कर कै मकान बणाया वह होग्या चकनाचूर
घर छोडन की खातिर हाम तै होगे थे मजबूर
हम सादे भोले दिन म्हारे ओले
पड़ै थे गोले म्हारी फीकी पड़गी शान

विजेन्द्र सिंह डोहकी आला रहता घणा उदास
हालात देखकै कलम उठाई छंद लिखा घणा खास
किसे होगे चाले कृष्ण काले
बहें खुन के नाले कर ल्यो नै कुछ ध्यान
तर्ज-देशी (दो गुमचे दैन तेरे तिरछे नैन)