भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रागनी 9 / विजेन्द्र सिंह 'फौजी'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 28 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेन्द्र सिंह 'फौजी' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कारगिल म्हं छिड़ी लड़ाई उडै फटते रोज बम्म
धड़-धड़ हृदया धड़कें जा मेरा काल्जा नरम
तेरे फिक्र म्हं माड़ी होगी मैंने सोच भारी
बैचनी-सी छाई रहै सै ना सोऊँ रात सारी
आखं बिछाएँ राह म्हं बैठी-2 कद आओगे थम
बेरा ना किस हाल म्हं सो मनैं फिक्र घणा सै पिया
सारे दिन परेशान रहुँ मेरा लागता ना जिया
भुंडे-भुंडे मनैं सपने आवैं-2 मेरा घुट ज्या सै दम
कती मरण नै हुई गात म्हं जोश भी कोन्या
बेकाबू म्हं दिल होरा सै मनैं होश भी कोन्या
लेण गई थी बरसम पिया-2 मैं ले आई सरसम
विजेन्द्र सिंह डोहकी आले थारी चिठ्ठी भी ना आई
फोन भी ना करा तनै हो मेरी ननद के भाई
ख्याल करो नै ब्याही का-2 क्यूँ कररे सो जुल्म
तर्ज-गाडे आली गजबण छोरी बहादुरगढ़ के