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जो भूखा है / वशिष्ठ अनूप

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जो भूखा है छीन झपटकर खाएगा
कब तक कोई सहमेगा शरमाएगा

अपनी भाषा घी शक्कर सी होती है
घैर की भाषा बोलेगा हकलाएगा

चुप रहने का निकलेगा अंजाम यही
धीरे धीरे सबका लब सिल जाएगा

झूठ बोलना हरदम लाभ का सौदा है
सच बोला तो जान से मारा जाएगा

जारी करता है वह फतवे पर फतवा
नंगा दुनिया को तहजीब सिखाएगा

मजबूरी ही नहीं जरूरत है युग की
गठियल हाथों में परचम लहराएगा